उस गाढ़ अंधकार में जब स्मृतियां 
उतरती हैं जुगनुओं की तरह,
उन अर्ध निमग्न पलों 
में, मैं हाथ बढ़ाता 
हूँ, सभी दुःख -
दर्द से 
उभरने के लिए, उड़ा देना चाहता हूँ 
मैं सीने में बंद चातक को,
हर एक भावनाओं 
को, हम चाह 
कर भी, 
पालतू बना नहीं सकते, खोल देता 
हूँ, मैं सभी रुद्ध कपाट, कुछ 
वक़्त और चाहिए कटे 
हुए पंखों को, पुनः 
पूर्ववत बढ़ने 
के लिए, 
सभी दुःख - दर्द से उभरने के लिए। 
क्रमशः जीवन सिमट चला है,
समय के ताबूत में बून्द 
बून्द, किसी प्रस्तर -
युगीन शंबूक 
की तरह,
फिर 
भी मुझे देखना है भोर का हरिद्ररंगी 
वेश, तुम दिगंत में मेरी प्रतीक्षा 
ज़रूर करना, कुछ देर और 
लगेगी, इन उलझी 
हुई पहेलियों 
से पूरी 
तरह 
बाहर निकलने के लिए, कुछ वक़्त 
और चाहिए कटे हुए पंखों को,
पुनः, पूर्ववत बढ़ने 
के लिए। कुछ 
पल अभी 
तक, 
जल बिंदुओं की तरह झूल रहे हैं - -
मायावी जाल में, कुछ उत्तर, 
अभी तक, ढूँढना है बाक़ी  
समय के सवाल में,
कोहरे में डूबे 
से हैं 
सभी रास्ते, फिर भी ज़िन्दगी को 
बढ़ना है आगे, हर हाल में,
हिमशैल को चाहिए 
अदृश्य ऊष्मा 
परिपूर्ण 
रूप से 
पिघलने के लिए, प्लावित जीवन 
से उबरने के लिए - - 
* *
- - शांतनु सान्याल 
   
 
11 दिसंबर, 2020
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वाह
जवाब देंहटाएंहृदय तल से आपका आभार - - नमन सह।
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