कुछ अनकही बातें जमे रहने दो
अधर कोनों में, ईशानी मेघ
की तरह, निरुद्ध चाहतों
की साँझ, चाहती है
अप्रत्याशित
उष्णता,
कुछ
और अंधकार को होने दो निरंध्र
अपारदर्शी, सजल भावनाओं
को रहने दो, यूँ ही अर्ध -
सुप्त रजनीगंधा
के वृन्तों
में
आबद्ध, ये पल चाहते हैं कुछ
अधिक पूर्णता, निरुद्ध
चाहतों की साँझ,
चाहती है कुछ
और
अंतहीन उष्णता, अभी तक
है आलोक विहीन, रात -
रानी का मंच, दूर
से आने को है
जुगनुओं
के
जुलूस, जलने को हैं अंतर की
अनंत आवेग शिखा, चाँद
को बिखेरने दो कुछ
और अधिक
मोहनी
माया,
जागने दो ज़िन्दगी को किसी
देवदूत की रूह से, रहने
दो मेरे सीने में कल
तक जीने की
मुग्धता,
ये पल
चाहते हैं कुछ अशेष पूर्णता - -
* *
- - शांतनु सान्याल
09 दिसंबर, 2020
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सुन्दर
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंसुंदर अभिव्यक्ति ..।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
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