समय के अंगविक्षेप में दंभ रहता
है भरा, निःशब्द मंचित हो
कर छोड़ जाता है सब
कुछ जहां के तहां,
मुड़ कर वो
देखता
भी
नहीं कि कौन हो तुम, दिग्विजयी
सम्राट या कोई रमता जोगी,
उसे परवाह नहीं, चलता
रहा, या दिगंत से
पूर्व थम गया
ज़िन्दगी
का
कारवां, समय छोड़ जाता है सब
कुछ जहां के तहां। हर सांस
है बंधी प्रयोजन की
डोर से, सघन
अंधकार
में पड़े
रहते हैं सभी रिक्त मधुकोष, बिखरे
पड़े होते हैं, टूटे हुए संचय पात्र
पृथ्वी पर, मुस्कुराता सा
लगता है, उन पलों में
विस्तीर्ण नीला
आसमां,
समय
छोड़ जाता है सब कुछ जहां के
तहां। गतिहीन इतिहास
खोजता है, छाया
चित्रों में,
किसी
निर्बोध शिशु की तरह समय का
मूल स्रोत, समय कर जाता
है, उसे अनगनित
मिथकों से
ओतप्रोत,
समय
जा
चुका है बहुत दूर, वो नहीं लौटेगा
दोबारा यहां - -
* *
- - शांतनु सान्याल
24 दिसंबर, 2020
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उसे अनगनित
जवाब देंहटाएंमिथकों से
ओतप्रोत,
समय
जा
चुका है बहुत दूर, वो नहीं लौटेगा
दोबारा यहां ...
सुंदर रचना।
सादर।
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुन्दर और सारगर्भित रचना।
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंबहुत खूब सर!
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंकौन हो तुम, दिग्विजयी
जवाब देंहटाएंसम्राट या कोई रमता जोगी,
उसे परवाह नहीं, चलता
रहा, या दिगंत से
पूर्व थम गया
ज़िन्दगी
का
कारवां,..नायाब पंक्तियाँ..सशक्त और सुंदर कृति..।
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंबहुत ही शानदार।
जवाब देंहटाएंसमय का मौनाभिनय सब समेट कर लें जाता है अपने संग ।
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
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