02 दिसंबर, 2020

आकाशरंगी समुद्र - -

ह्रदय मुहाने की ज़मीं रहती है सदा
बालुओं से भरी, ज्वार-भाटा
आते जाते रहे, ज़िन्दगी
को यूँ ही दूर से
समुद्र हम
दिखाते
रहे,
हमें ज्ञात है समय का जलोच्छास,
बहाने से पहले देता नहीं वो
ज़रा भी अवकाश, फिर
भी ज़िन्दगी भर
हम उससे
हाथ
मिलाते रहे,  ज़िन्दगी को यूँ ही -
दूर से, समुद्र हम दिखाते
रहे। हर उजली चीज़
हो, सौ फ़ीसदी
ख़ालिस,
ये
हर बार ज़रूरी तो नहीं, उस सफ़ेद
गिरेबान के अंदर क्या है,
कमीज़ उतारने वाले
को है अच्छी
तरह पता,
वो
चेहरा था अपने आप में कोहरे से
कम नहीं, अंदर न जाने,
कितनी ही छुपी हुई
हैं अंध गलियां,
फिर भी
लोग
उसे उजाले का अवतार बताते रहे,
ज़िन्दगी को यूँ ही दूर से,
समुद्र हम दिखाते
रहे।

* *
- - शांतनु सान्याल   
 
 
 

7 टिप्‍पणियां:

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past