दूसरे से मिलती जुलती सी
रहीं, सिर्फ़ बदलते गए
हर एक मोड़ पर
किरदार,
हम
ने चाहा कि पृथ्वी का रंग रूप
रहे, हमारी कल्पनाओं के
आधार, जिस में हर
एक पौधे को
मिले
सके उसके हिस्से का प्रकाश,
लेकिन स्वप्न तो स्वप्न
थे, उतर आए धूसर
ज़मीं पर अंततः
थक हार,
क्या
हेमंत और क्या बसंत, नहीं
कोई जीवन में अंतराल,
अरण्य बेल का
आरोहण,
कभी
नहीं रुकता, वो अनसुना कर
जाता है, ऊँचे पहाड़ों के
ललकार, उसका
योग - वियोग
सब कुछ
है
बराबर, वो न कोई योगी, न ही
महत शख़्सियत, वो इंसान
है केवल आत्मकेंद्रित,
उसे ख़ुद के सिवा
नहीं किसी से
कोई भी
सरोकार, कुछ लोग जूझते रहे
उम्र भर ख़ुद को कुछ
साबित करने के
लिए, कुछ
लोग
येन प्रकारेण, सत्य असत्य के
परे पहुँच गए वृष्टि छाया
के पार, सिर्फ़ बदलते
गए हर एक मोड़
पर किरदार,
कदापि
तालियों से नहीं साबित होता
कौन कितना है -
असरदार।
* *
- - शांतनु सान्याल
योग - वियोग
सब कुछ
है
बराबर, वो न कोई योगी, न ही
महत शख़्सियत, वो इंसान
है केवल आत्मकेंद्रित,
उसे ख़ुद के सिवा
नहीं किसी से
कोई भी
सरोकार, कुछ लोग जूझते रहे
उम्र भर ख़ुद को कुछ
साबित करने के
लिए, कुछ
लोग
येन प्रकारेण, सत्य असत्य के
परे पहुँच गए वृष्टि छाया
के पार, सिर्फ़ बदलते
गए हर एक मोड़
पर किरदार,
कदापि
तालियों से नहीं साबित होता
कौन कितना है -
असरदार।
* *
- - शांतनु सान्याल
वाह
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंकुछ
जवाब देंहटाएंलोग
येन प्रकारेण, सत्य असत्य के
परे पहुँच गए वृष्टि छाया
के पार, सिर्फ़ बदलते
गए हर एक मोड़
पर किरदार,
कदापि
तालियों से नहीं साबित होता
कौन कितना है -
असरदार।
सटीक ...सुन्दर एवं सार्थक
लाजवाब सृजन।
तहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
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