18 दिसंबर, 2020

पतझर के बाद - -

अपना अपना है सुख, कुछ जागते  
रहे सारी रात, बिखरे सिक्कों
को चुनते हुए, कुछ मेरी
तरह जीते रहे
लापरवाह,
सुदूर
आकाश पार, बंद आँखों से, यूँ ही
बेतरतीब से, तारों को गिनते
हुए।  हर तरफ़ हैं न जाने
कितने ही तरह के
हाट - बाज़ार,
फिर भी
लोग
थकते नहीं, उम्र भर किये जाते
हैं, मोल - भाव का व्यापार,
चाहे आप, हमें जो जी
में आए, नाम दे
दें, हमने
तो कई
रातें गुज़ारी हैं, उनकी पलकों से
टपकते, ओस कणों को
सहेजते हुए, यूँ ही,
बेतरतीब से,
तारों को
गिनते
हुए। धन और ऋण का खेल, - -
अंततः बराबर शून्य ही
निकला, कितने
ही सितारों
को देखा
है -
हमने मुख पृष्ठ से, सीधे तृतीय
पृष्ठ पर उतरते हुए, हमारा
ठिकाना यूँ तो कहीं भी
नहीं, उड़ा ले जाए
हवा, जहाँ जी
चाहे, यूँ
तो  
कई बार हमने देखा है दरख्तों को
पोशाक बदलते हुए, मौसम
को अपने वादे से सरे -
आम मुकरते
हुए, कुछ
जागते  
रहे सारी रात, बिखरे सिक्कों को
चुनते हुए।

* *
- - शांतनु सान्याल
 
 
 
 

23 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१९-१२-२०२०) को 'कुछ रूठ गए कुछ छूट गए ' (चर्चा अंक- ३९२०) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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  2. पतझड़ के बाद जो बहार आती हैं उसे देखने के लिए सब्र कहाँ इंसानों में
    बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  3. ऐसी लापरवाही से जीना ... बेहद खूबसूरत ।

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  4. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति,सादर नमन सर

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  5. हर तरफ़ हैं न जाने
    कितने ही तरह के
    हाट - बाज़ार,
    फिर भी
    लोग
    थकते नहीं, उम्र भर किये जाते
    हैं, मोल - भाव का व्यापार,

    सुन्दर...

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  6. बहुत गहन अभिव्यक्ति ।
    मुख पृष्ठ से तृतीय पृष्ठ ग़ज़ब दृष्टि।
    अप्रतिम सृजन।

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