उंगलियों के दाग़, अभी तक हैं - -
लिपटे हुए मृदु पंख में, 
मुक्त हो कर भी 
मन, सुदूर 
उड़ 
नहीं पाता, बारम्बार लौट आता 
है मायावी जाल में, घना 
कोहरा झपटने को है 
आतुर, आलोक
स्वयं को
बचाना 
चाहता है हर हाल में, दीर्घ है ये 
अरण्यमय रात्रि, यात्रा भी 
नहीं आसान, हाथों 
से छूटता जाए 
धीरता का 
लगाम, 
तुम 
अभी तक बैठे हुए हो न जाने 
किस आवारा ख़्याल में, 
बिहान रखता है,
फूल खिलने 
के सभी 
रहस्य 
अपने ही देखभाल में, रुमाल के 
सीने में उभरे हैं, अनगिनत 
ख़्वाब के बेल बूटे, अब 
ये न पूछिए कि 
कितनी बार
उन 
उंगलियों के नोक पर सुइयां हैं 
टूटे, ज़िन्दगी हर बार 
उभरनी चाहिए इक 
नए अंदाज़ के 
साथ, एक 
मोहक 
चाल ढाल में, कुछ अदृश्य स्पर्श 
देह में रहते हैं कोशिकाओं तक 
अवशोषित, वो भूल जाते 
हैं मुक्त उड़ान, बस 
रहना चाहते 
हैं अपनों 
के 
नज़दीक यथावत शिकस्ता हाल 
में - -
* * 
- - शांतनु सान्याल   
  
 
 
28 दिसंबर, 2020
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सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसादर
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंसुन्दर सृजन
हटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंमाल के
जवाब देंहटाएंसीने में उभरे हैं, अनगिनत
ख़्वाब के बेल बूटे, अब
ये न पूछिए कि
कितनी बार
उन
उंगलियों के नोक पर सुइयां हैं
–उम्दा सृजन
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह। नूतन वर्ष की शुभकामनाएं।
हटाएंवाह शांतनू जी...क्या खूब लिखा है कि ...अब
जवाब देंहटाएंये न पूछिए कि
कितनी बार
उन
उंगलियों के नोक पर सुइयां हैं
टूटे, ज़िन्दगी हर बार
उभरनी चाहिए इक
नए अंदाज़ के
साथ...सुमित्रानंदन पंत की कविता याद आ गई...वे भी पंक्षियों के बहाने ना जाने क्या क्या कह देते थे
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह। नूतन वर्ष की शुभकामनाएं।
हटाएंउंगलियों के नोक पर सुइयां हैं
जवाब देंहटाएंटूटे, ज़िन्दगी हर बार
उभरनी चाहिए इक
नए अंदाज़ के
साथ,
सुंदर शब्द संयोजन ....बहुत सुंदर रचना 🌹🙏🌹
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह। नूतन वर्ष की शुभकामनाएं।
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