10 दिसंबर, 2020

शून्य की महत्ता - -

उस अलिंद से उतरती, दूधिया रौशनी
में, कितनी ही परछाइयों ने दम
तोड़ दिया, समारोह के अंत
में, ख़ाली कुर्सियों की
मौन पंक्तियों
में, जीवन
पाता
है, कुछ ख़ुश्बुओं के उतरन, जिन्हें -
लोगों ने भरपूर उपयोग किया,
और बेतरतीब से छोड़
दिया, कितनी ही
परछाइयों ने
दम तोड़
दिया।
कुछ भावनाएं थे अस्तर, जिन्हें ओढ़ा
गया, बहुत कुछ छुपाने के लिए,
ताकि वास्तविकता कहीं
प्रकाशित न हो जाए,
कितने रिश्तों
में छुपे
होते
हैं अति सूक्ष्म गाँठ, जिन्हें लोग बड़ी
ख़ूबसूरती से, सभ्यता की गठरी
में छुपा रखते हैं, उजाले -
अंधेरे के मध्य कहीं,
वो गोपन लेन
देन खुल के
यूँ ही
उद्भासित न हो जाए, वास्तविकता
कहीं प्रकाशित न हो जाए।
रात के स्थिर जल में
डूबते और उभरते
रहे न जाने
कितने
ही
घावों के बहते हुए द्वीप, शून्य की
है अपनी जगह अलग विशेषता,
गुणन विधि में शून्यता
का विस्तार भूला
देता है सब -
व्यथा,
उस खोखले समय में ख़ुद के सिवा
कोई नहीं होता जीवन के
समीप, डूबते और
उभरते रहे न
जाने
कितने ही घावों के बहते हुए द्वीप।

* *
- - शांतनु सान्याल

9 टिप्‍पणियां:

  1. क्या खूब लिखा है आपने। हमेशा की तरह शानदार व प्रभावशाली रचना। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय शान्तनु जी।

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  2. बेहतरीन सृजन
    साधुवाद
    सान्याल जी 🙏
    - डॉ. वर्षा सिंह

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