सत्य की परिभाषा अक्षय है वो 
कभी नहीं बदलती, चाहे 
कोई भी, उस पर 
विश्वास न 
करे, 
झूठ आख़िर झूठ रहता है चाहे 
सारी दुनिया, उस पर 
आँख मूँद कर 
यक़ीं करे, 
गुरु 
द्रोण हर युग में होते हैं असत्य 
का शिकार, कुछ लोग 
जीत कर भी हार 
जाते हैं, ये 
और 
बात है, कि वो न करें उसे पूर्ण 
स्वीकार, लेकिन एकांत 
क्षणों में, मौन दर्पण 
करता है, अंग 
प्रत्यंग 
में 
नग्न सत्य से प्रहार, भीतर का 
महाभारत झूठ के साए 
में कभी समाप्त 
नहीं होता,
सत्य 
का 
रथ है कालजयी, चुपचाप कर 
जाता है त्रिलोक पार, वो 
नहीं करता है, किसी 
अश्वत्थामा का 
इंतज़ार। 
* * 
- - शांतनु सान्याल     
 
05 दिसंबर, 2020
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सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंवाह! बेहतर सर ।
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रवाह
तहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंसत्य को प्रभावशाली शब्दों में परिभाषित करती सशक्त रचना ।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
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