04 दिसंबर, 2020

नैतिक चरित्र - -

उबड़-खाबड़ रास्ते बहुधा ले जाते
हैं, अनछुए, ख़ूबसूरत निसर्ग
की ओर, शर्त सिर्फ़
इतनी है कि
हमें उन
विषम
राहों से गुज़रना है, यूँ तो हर मोड़
पर मिल जाएंगे, कितने ही
छद्म रहनुमाओं के
ठिकाने, ये
हमें
स्वयं ही तय करना है किस जगह
पर ठहरना है। छलावरण की
इस दुनिया में चेहरों को
पढ़ना, इतना भी
आसान
नहीं,
हर तरफ़ हैं बिखरे हुए कितने ही
अदृश्य नागपाश, हर हाल
में बचते बचाते, इस
भीड़ भरे शहर में
आगे की
ओर
हमें निकलना है, नैतिक किताबों
का ठिकाना, सिर्फ़ उस रद्दी -
वाले को है मालूम, किस
गली में है वो कबाड़ -
ख़ाना, किस
दुकान में
है उन
नैतिक चरित्रों का आना - जाना, -
हम तो ठहरे अप्रसिद्ध लोग,
हमें बहरहाल, वक़्त के
हमराह यूँ ही जीना
मरना है, हमें
हर विषम
राहों से
सुबह शाम गुज़रना है - - - -

* *
- - शांतनु सान्याल
 

 

15 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा नैतिक चरित्र अब कबाड़खाने में ही मिलेंगे... निम्नवर्ग या गरीब गुरवे ही नैतिकता निभा रहे है वहाँ पहुँचने के लिए भी छद्म रहनुमाओं से बचना होगा...
    बहुत सुन्दर विचारणीय ।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (06-12-2020) को   "उलूक बेवकूफ नहीं है"   (चर्चा अंक- 3907)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --   
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  3. अद्भुत सृजन .. चिन्तनपरक भावाभिव्यक्ति ।

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