04 दिसंबर, 2020

अनुत्तरित पल - -

 

अनेकों बार हम, ग़लत नहीं होते,
हमें जो सही, साबित कर
सके, बस, वो शब्द  
नहीं होते, इसी
बिंदु पर

कर रुक जाती है ज़िन्दगी, कैसे
समझाएं तुम्हें, हर इम्तहान
के नतीजे, शत प्रतिशत
नहीं होते। सुबह
और शाम
के
दरमियां, समय के हाथों सूरज
था महज एक खिलौना,
कुछ अंतरतम के
आधी रात
वाले
सूर्य कभी अस्त नहीं होते। सब
खेल है हथेली के रेखागणित
का, बहुत कुछ मिलने
के बाद भी कुछ
लोग हाथ
फैलाते
रहे
शून्य के सामने, काल निर्णय है
अपनी जगह चिरस्थायी,
कुछ फ़ैसले, लाख
कोशिशों के
बाद भी
कभी
निरस्त नहीं होते। फिरकी वाले
की तलाश असमाप्त ही रही,
चेहरे में उभर आए
असंख्य झुर्रियों
के निशान,
वो थमा
के
मोह माया की फिरकी हो चुका
है जाने कब अंतर्ध्यान,
समय नहीं थमता,
हर एक दिवार
घड़ी, बंद
होने
पर दुरुस्त नहीं होते, अनेकों बार
हम ग़लत नहीं होते - -

* *
- - शांतनु सान्याल
    

12 टिप्‍पणियां:

  1. अनेकों बार हम, ग़लत नहीं होते,
    हमें जो सही, साबित कर
    सके, बस, वो शब्द
    नहीं होते, इसी...बहुत सटीक अभिव्यक्ति ..।सुंदर कृति ..।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 04 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. सचमुच एक बहुत सशक्त रचना | शुभ कामनाएं |

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