समय स्रोत निरंतर बहता जाए,
जिन लहरों को अभी अभी 
हमने छुआ है फिर 
दोबारा वो 
हाथ 
न आए, कितने ख़्वाब किनारे 
आ लगे, कितने बैठे रहे 
अपनी जगह, काग़ज़ 
की नाव बहती 
जाए, कुछ 
यादें 
हैं बहुत ही हठीले, अल्बम से -
निकल, नदी घाटों में हैं
जा बैठे, विगत पलों 
की धूनी रमाए, 
वो सभी 
हैं 
नाज़ुक शीशमहल की बहुरंगी 
मछलियां, जल कुंड टूटते 
ही, ख़्वाहिशों के सांस 
फ़र्श पर दूर तक 
बिखर जाए, 
पार्क का 
बेंच 
राह तकता है न जाने किसका,
ढलते धूप के साथ, बैठा 
हुआ तो है सूखा 
पत्ता, धीरे -
धीरे लोग 
फिर 
निकलेंगे अपने अपने असमय 
के बंदी गृह से, मुँह में लपेटे 
दूरत्व का मुखौटा !
इंसान जाए 
भी तो 
आख़िर कहाँ जाए - -
* * 
- - शांतनु सान्याल 
  
 
 
05 दिसंबर, 2020
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बहुत बढ़िया👌🌻
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंवाह!बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
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