ज्यामिति बॉक्स और ज़िन्दगी 
मिलते हैं किसी परिपूरक 
समीकरण की 
तरह, वो 
शख़्स 
यूँ 
तो रहता है मेरी उँगलियों के 
बेहद क़रीब, फिर भी 
खो जाता है नन्हें 
किसी रबर 
की तरह, 
उसके 
खो जाने और पुनः हाथ आने
के दरमियान, मैं खंगाल 
जाता हूँ अंदर बाहर 
सब तरफ, कुछ 
पल उसके 
बग़ैर 
लगते हैं, किसी अधूरे सफ़र -
की तरह, कुछ लोग मिटा 
कर भी दे जाते हैं, 
बहुत कुछ 
किसी 
लौटते हुए परिश्रांत लहर की
तरह। ख़्वाबों के अंकन -
कागज़, अक्सर 
ही कोरे 
रह 
जाते हैं, वास्तविकता की - -
खुरदरी धरातल पर, 
रंगीन पेंसिलों 
के नोक 
टूट 
जाते हैं, गोधूलि से पहले बढ़ 
जाती हैं परछाइयों की 
दुनिया, मध्य रात 
तक पहुँचते -
पहुँचते 
सभी
वशीकरण के जाले अपने आप 
टूट जाते हैं, तमाल पात 
थे, कुछ तथाकथित 
आत्मीयता !
प्रयोजन 
के बाद 
बड़ी 
ख़ूबसूरती से फेंक दिए गए, - 
उतरती धूप की मंज़िल थी 
घाट की सीढ़ियों तक,
कुछ देर के लिए, 
ज़िन्दगी के 
पल 
दीवार के सहारे यूँ ही टेक दिए 
गए, सुगंध तक रहा रिश्ता 
मुरझाते ही सभी फूल 
नदी में फेंक दिए 
गए - - 
* * 
- - शांतनु सान्याल  
13 दिसंबर, 2020
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वाह
जवाब देंहटाएंहृदय तल से आपका आभार - - नमन सह।
हटाएंहृदय तल से आपका आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति..।
जवाब देंहटाएंआपकी अनमोल टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआपकी अनमोल टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंबहुत ही उम्दा रचना।
जवाब देंहटाएंआज मैंने बहुत से ब्लॉग पढ़े लेकिन यहां आकर तृप्ति मिली।
कई दिनों बाद अच्छी रचना पढ़ी है।
लाजवाब।
कृपया आप मेरे ब्लॉग तक आकर अपने विचार रखें।
नई रचना- समानता
आपकी अनमोल टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत ही शानदार सृजन ,भाव प्रधान सुंदर अभिव्यक्ति एक अलग अंदाज है आपके लेखन में बहुत गहराई और परिपक्वता का सुंदर समन्वय है ।
जवाब देंहटाएंअभिनव।
तहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
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