रक्तिम सूर्य डूबा है, जलता हुआ बेहाल,
पुनः निगाहों में, घिर आई है संध्याकाल,
तृषित जीवन, तलाशता है बून्द भर मेह,
घाव भरने के लिए चाहिए, कुछ अंतराल,
तारे हैं डूबने को, दिल के यूँ ही क़रीब रहो,
मिटने को है, प्राची में रात का शून्यकाल,
क्यों कांपता सा है, शरीर का जीर्ण पिंजर,
बेचैन है उड़ने को मन पाखी सांझ सकाल,
जन्म मृत्यु, हास्य क्रंदन, सर्व है गतिमान,
कभी हर्षोल्लास, कभी जीवन रहे निढाल,
इक अदृश्य ऋण सा है, अनुरागी अनुबंध,
पृथ्वी गगन, दिगंत रेखा बांधे नाभि नाल,
लौकिक अलौकिक सभी शून्य में प्लावित,
सिर्फ़ तुम ही तुम हो अंतरतम में बहरहाल,
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- - शांतनु सान्याल
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 10 एप्रिल 2023 को साझा की गयी है
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंबहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
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