जीवन की परिभाषाएँ तुमने जो गढ़ी
असलियत से दूर पायी, ज़िन्दगी
तो हमने भी जी है, फूलों को
दर्द से मुस्कुराते और
चाँदनी को
खुद-ब-खुद जलते देखा, घाटियों के
प्रतिध्वनि में चीखती, कराहती
आवाज़ें सुनी, इन्द्रधनुष के
रंगों में बिखरती
मासूम की
हसरतें
देखीं,
प्रेम अनुराग के मायाजाल में - -
ग़रीब जज़्बातोँ को घुट
घुट कर मरते देखा,
सुबह जो मेरे
सीने से
लिपट
दोस्ती के नए आयाम रच गया,
साँझ ढलते उसी ने रुख़
अपना मोड़ लिया,
किसी झरने
की तरह,
तुमने शायद ज़िन्दगी दूर से - -
देखी होगी, नीले पर्बतों को
ख़्वाबों में ढाल दिया,
क़ाश ज़िन्दगी
तुम्हारे
ग़ज़ल के मानिंद होती ख़ूबसूरत
होती।
--- शांतनु सान्याल
24 अप्रैल, 2023
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