10 अप्रैल, 2023

लापता रहनुमा - -

ज़िन्दगी के सफ़र में, यूँ तो दोस्त बेहिसाब थे,
जलते ही बुझ गए, कुछ चिराग़ ए इंक़लाब थे,

एहसास ए जद्दो जेहद का, अर्थ ही नहीं मालूम,
वो शख़्सियत, दरअसल पैदाइशी कामयाब थे,

हर दौर में लोग दौड़ते हैं, शाहना चेहरे के पीछे,
यूँतो हम भरी महफ़िल में इक खुली किताब थे,

कौन बांध कर रख सकता है, उम्रभर किसी को,
कभी हम भी, मौसम ए सरमा के आफ़ताब थे,

नाख़ुदाओं का तिलिस्म, हम ने देखा है अक्सर,
साहिल दूर मुस्कुराता रहा बस हम ज़ेरे आब थे,

मजबूरियां थीं बहोत, लिहाज़ा बेज़ुबान बने रहे,
रहनुमा सभी पुराने शीशी में बंद जदीद शराब थे,
* *
- - शांतनु सान्याल 

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