वो चाँद रात थी या कोहरे से उभरती कोई
आग़ाज़ ए सुबह, हमें कुछ भी याद
नहीं, ज़मीं थी ठहरी हुई या
आसमां था गर्दिश -
बदोन, हमें
कुछ भी ख़बर नहीं, कोई था हमारे वजूद
में इस क़दर शामिल कि, हमें ख़ुद
का पता नहीं, इक बहाव का
आलम बेलगाम दूर
तक, और हम
खो चले
थे किसी की निगाहों में रफ़ता रफ़ता - -
कब थमी शबनमी चाँदनी, और
कब उठी सितारों की
महफ़िल, हमें
कुछ भी
इल्म नहीं, कि हम न थे गुज़िश्ता रात - -
तेरी बज़्म में ऐ दुनिया वालों !
आग़ाज़ ए सुबह, हमें कुछ भी याद
नहीं, ज़मीं थी ठहरी हुई या
आसमां था गर्दिश -
बदोन, हमें
कुछ भी ख़बर नहीं, कोई था हमारे वजूद
में इस क़दर शामिल कि, हमें ख़ुद
का पता नहीं, इक बहाव का
आलम बेलगाम दूर
तक, और हम
खो चले
थे किसी की निगाहों में रफ़ता रफ़ता - -
कब थमी शबनमी चाँदनी, और
कब उठी सितारों की
महफ़िल, हमें
कुछ भी
इल्म नहीं, कि हम न थे गुज़िश्ता रात - -
तेरी बज़्म में ऐ दुनिया वालों !
* *
- शांतनु सान्याल
- शांतनु सान्याल
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