हम खिलें हर हाल में चाहे जितना भी हो
आसमां अब्र आलूद, राह तकती
है बहारें तेरी इक नज़र के
लिए, ढूंढ़ती है नूर
ए महताब
दर -
ब दर, मंज़िल मंज़िल, सिर्फ़ तेरे दिल -
के रहगुज़र के लिए, ये अँधेरे जो
अक्सर कर जाते हैं परेशां
पल दो पल के लिए,
हैरां न हो ये
ज़रूरी
हैं -
तलाश ए रौशनी के सफ़र के लिए, कहाँ
मय्यसर है, हर चीज़ का दिल के
मुताबिक़ ढलना, ज़िन्दगी
का ये अधूरापन ही
दिखाता है हर
क़दम
ख्वाब रंगीन, और यही बनाते हैं दिलकश
किनारे, जज़्बाती लहर के लिए !
* *
- शांतनु सान्याल
15 अप्रैल, 2023
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नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार 16 अप्रैल 2023 को 'बहुत कमज़ोर है यह रिश्तों की चादर' (चर्चा अंक 4656) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
आपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंलाजवाब प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंअभिनव उत्कृष्ट सृजन आदरणीय।
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
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