कोई प्रतीक्षा नहीं करता, फिर भी
अपनी धुरी पर लौटना होता है,
कुछ आशाएं जुड़ी रहती हैं
भूमिगत जड़ों की तरह,
वृक्ष को हर मौसम
के लिए तैयार
रहना होता
है ताकि
साया
से कोई महरूम न रहे, इसी एक
बिंदु पर ठहरा होता है ये
जीवन, चाहतों की
फ़ेहरिश्त में
कहीं ख़ुद
को
नगण्य करना ही दरअसल प्रेम की
पराकाष्ठा है, जहाँ पर पहुँच कर
हम अपने बिम्ब में किसी
और का चेहरा देखते
हैं, उस में ख़ुद को
एकाकार पाते
हैं चाहे वो
दिव्य
हो
या साकार, प्रणय प्रभा किसी एक -
तक सिमित नहीं होती, वो
अपने आप में अपरिमेय
है - -
* *
- - शांतनु सान्याल
21 अप्रैल, 2023
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-04-2023) को "बंजर हुई जमीन" (चर्चा अंक 4658) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका हृदय तल से आभार
हटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार
हटाएं