अदृश्य सत्ता पर जा कर, रुक जाती है आह,
छोड़ जाते हैं लोग दिल के अंदर जलता दाह,
कौन थमा गया, इन मासूमों के हाथ पे पत्थर,
कलम किताब छोड़ ये कैसा है ज़हरीला डाह,
कौन सिखाता है इन को जनम से जुर्म बाज़ी,
कच्ची उम्र ही में कर जाता है ज़िन्दगी तबाह,
ये कैसी रहगुज़र है, जहाँ इंसानियत है शून्य,
बस नफ़रत ही नफ़रत है, चारों तरफ बेपनाह,
सियासतदान बनाते हैं, इन को विषाक्त प्यादा,
विष फैलने के बाद कोई भी नहीं सुनता कराह,
जीओ और जीने दो, से बढ़ कर कोई धर्म नहीं,
धुंध से निकल कर धुंध में ही खो जाती है राह,
* *
- - शांतनु सान्याल
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 06 अप्रैल 2023 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
आपका असीम आभार आदरणीय ।
हटाएंजीओ और जीने दो, से बढ़ कर कोई धर्म नहीं,
जवाब देंहटाएंधुंध से निकल कर धुंध में ही खो जाती है राह,
वाह!!!!
आपका हृदय तल से आभार ।
हटाएं