ये सच है कि जीवन इतना सहज नहीं
दुःख दर्द, व्यथाएं, डूबते उभरते
इन्हीं क्षणों में इच्छाओं का
होता है पुनर्जन्म, माया
जो बनावटी हो कर
भी दे जाती है
स्वप्नों के
बीज,
यही सजल अनुभूति बचाते हैं भावनाओं
को असामयिक मृत्यु से, मरुभूमि
के पथ में खिलाते हैं थूहर,
नागकनी, मरूद्यान में
ले आते हैं लुप्तप्राय
श्रोत, स्वप्निल
पर्वत, पुष्प
गंध,
यहीं कहीं रेतेली टीलों में ज़िन्दगी खोजती
है प्रेम, अनुराग की बूंदें, अस्तित्व का
अर्थ, किसी के आँखों से टपकता
हुआ प्रदीपन, कारवां के
लिए रात्रि सराय, व
आकाशगंगा,
अंतहीन यात्राओं से लौटते हुए तारक वृन्द
कहते हैं - डूबना नियति है एक दिन,
फिर भी टूटने से पहले ज़रा नभ
अंधकारों से था जो
अनुबंध - निभा
जाएँ।
-- शांतनु सान्याल
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