26 अप्रैल, 2023

तलाश - -

कुछ एक शब्दों के फ्रेम में सिमटी हुई है
ज़िन्दगी, कुछ बिखरे हुए बिंदुओं
को जोड़ती है एक प्याली
गरम चाय, दहलीज़
से झांकती है
कच्ची
धूप,
अख़बार के पन्नों पर इक सरसरी निगाह,
वही रोज़ का सिलसिला, सुर्ख़ियों में
लिखी रहती हैं अर्द्ध सत्य की
कहानियां, इक नज़र
टेलीविज़न पर
वही चारा
फेंकते
हुए
रंगीन विज्ञापन, सांप सीढ़ी का खेल बस
यूँ ही चलता रहता है आठों पहर, कोई
सुध किसी की नहीं लेता है यहाँ,
नैतिक - अनैतिक सब कुछ
है बराबर, जब तक है
पास टका, तब
तक दुनिया
रहे प्रिय
सखा,
वरना, खोजते रहो ख़ुद को गुमशुदा की
तलाश में, दिखाओ अपनी तस्वीर
और पूछो, क्या आपने इन्हें
देखा है, चाय ख़तम
और धुआं भी
लापता ।
* *
- - शांतनु सान्याल
 

   

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