11 अप्रैल, 2023

मौन स्पर्श - -

गहन अंधकार में वो निगाहों का स्पर्श
छूना चाहती हैं पलकों की ज़मीं,
दशकों बाद भी गुज़रना
चाहती है, नेत्र बिंदुओं
से होकर, एक
अद्भुत सा
रोमांच
छुपा
रहता है आज भी उस उड़ते हुए चुम्बन
में ! वो निगाहें अनवरत करती हैं
पीछा, महा जनस्रोत से हो कर
नितांत एकाकी पलों में,
घर करना चाहती
हों जैसे देह
की रक्त
तंतुओं
में,
वो अलौकिक अनुभूति उड़ा ले जाती है
सप्त गगन के उस पार, पुनर्जन्म
का एहसास होता है हिय के
स्पंदन में, एक अद्भुत
सा रोमांच छुपा
रहता है आज
भी उस
उड़ते
हुए चुम्बन में !
* *
- - शांतनु सान्याल

4 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (13-4-23} को ज़िंदगी इक सफ़र है सुहाना" (चर्चा अंक 4654)" पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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