25 अप्रैल, 2023

देह प्राण के अतिक्रम - -


सूखे पत्तों का इतिहास कोई नहीं लिखता,
फूलों पर लिख जाते हैं लोग महा गाथिका,

शाखों के धुव्र छुपाए रखते हैं पत्तों के भ्रूण,
खिलते हैं पुष्प चाहे गहनतम रहे नीहारिका,

सभी कुछ मंचस्थ होता है, हमारे सम्मुखीन,
दृष्टिभ्रम करते हैं सम्मोह के रंगीन यवनिका,

अत्यंत एकाकी रहता है कोई दर्शक दीर्घा में,
जब करते हैं, मौन संवाद शुक और सारिका,

पूर्णिमा के मधुरस में जब डूबे सारा निधिवन,
देह प्राण तब समान जब मिलें कृष्ण राधिका,
* *
- - शांतनु सान्याल 

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (27-04-2023) को   "सारे जग को रौशनी, देता है आदित्य" (चर्चा अंक 4659)  पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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