07 अप्रैल, 2023

मृगतृष्णा - -

बिहान और सांझ के मध्य बहती
जाए समय की धारा, अनंत
प्रणय हो जन्म जन्मांतर
का, एकमेव
शुक्रतारा,

उठे निःश्वासों में परस्पर के
लिए, सुधामय प्राण वायु,
एकाकार हो देह प्राण
अंतर्मन में बसे
मोक्ष का
किनारा,

जनम मरण रहे गणना के परे,
नियति रहे सदा अडिग,
बहुत कुछ कह
जाता है,
टूटता
हुआ
चमकदार सितारा,

चौंसठ घरों से हो कर पहुंचना
होता है राजन के दरबार,
अपना अपना
दृष्टिकोण
है कौन
भला
जीता कौन हारा,

अदृश्य इच्छापत्र के पृष्ठों
पर हैं सभी नामित
हस्ताक्षर, सब
कुछ का
अंत है
निश्चित, न कुछ तुम्हारा न
हमारा,
* *
- - शांतनु सान्याल 

4 टिप्‍पणियां:

  1. जनम मरण रहे गणना के परे,
    नियति रहे सदा अडिग,
    बहुत कुछ कह
    जाता है,
    टूटता
    हुआ
    चमकदार सितारा,,,,'! बहुत सुंदर रचना नियती हमेशा अडिग ही रहती है भाग्य के फ़ैसले के साथ

    जवाब देंहटाएं
  2. जनम मरण रहे गणना के परे,
    नियति रहे सदा अडिग,
    बहुत कुछ कह
    जाता है,
    टूटता
    हुआ
    चमकदार सितारा,,,,'! बहुत सुंदर रचना नियती हमेशा अडिग ही रहती है भाग्य के फ़ैसले के साथ

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