08 अप्रैल, 2023

सुबह की पहली किरण - -

उन निगाहों में कहीं, ख़ुश्बुओं की इक अंजुमन सी है,
रात रुक जाए पलकों के तले, उम्रभर की थकन सी है,

इश्क़ ए चार दीवारी के बाहर, जी है कि लगता ही नहीं,
दहलीज़ के पार ज़िन्दगी, टूटी हुई शाख़ ए चमन सी है,

न जाने कितने ख़ानों में, बंट चुकी है अम्ल इंसानियत,
सरबराहों के गोशा ए दिल में पोशीदा इक शिकन सी है,

उजाले की चाहत में अंधेरों का है यूँ मुसलसल तआक़ब,
शगुफ़्ता गुलाब का ख़्वाब, सुबह की पहली किरण सी है,

निगाहों के परे है एहसास ए रूह की यूँ बेइंतहा आवारगी,
मुहोब्बत की हालत, सदियों से सुलगती इक दहन सी है,
* *
- - शांतनु सान्याल

   
   









2 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते.....
    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की ये रचना लिंक की गयी है......
    दिनांक 09/04/2023 को.......
    पांच लिंकों का आनंद पर....
    आप भी अवश्य पधारें....

    जवाब देंहटाएं

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past