24 अप्रैल, 2023

अंतराल

एक दीर्घ अंतराल, शायद
पलाश खिलें हों, बचपन
की धुप छाँव, कुछ
धुंधले कुछ
उज्जवल  
समय विकराल, शायद
अनायास मिलें हों,
आम्रकुंजों में प्रवासी कोकिल
कुहके दिन ढलते, होली
के रंगों में वो
कच्ची प्रणय बेलें,
जीवन मायाजाल,
शायद कहीं
अमलतास हिलें हों, आषाढी
रिमझिम और भीगते
अपरिपक्व देह ,
सोंधी माटी
की महक,
नव उभरते उमंगों का कम्पन
कमल शोभित ताल,
शायद प्रणय
आभास
गीले हों।
 --- शांतनु सान्याल

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