23 अप्रैल, 2023

जाने किस सोच में - -

अस्फुट लहज़े में था धुंध भरी वादियों का सफ़र,
उनींदी आँखों से देखा, अस्पष्ट सी एक रहगुज़र,

न कोई अरण्य, न ही मरुस्थल, न कोई गुलशन,
अदृश्य देशांतर जो कर गया अंतरतम को बेहतर,

उस प्रवाहित द्वीप में थी शांत आलोकमय वृष्टि,
युग्म प्रणय से परे, एक अनुपम संतुष्टि की लहर,

न पृथ्वी न आकाश न ही चाहतों की दिगंत रेखा,
मध्य हृदय था अवस्थित जिसे ढूंढा किया उम्रभर,

कोई नहीं अधिष्ठित, इस संसार में सभी हैं यायावर,
जागे तो है सवेरा जाने किस सोच में जागे रात भर,
* *
- - शांतनु सान्याल
 
 
  

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