कुछ ख़्वाब आधी रात फड़फड़ाते
हैं, किसी पंख विहीन तितली
की तरह, पहली किरण
से पहले झर जाते
हैं जज़्बात किसी
नाज़ुक कली
की तरह,
अहाते में अनाम परिंदा, अक्सर
सुबह सवेरे डाकिए की तरह
पुकारता है, न जाने कौन
बरसों बाद भी, उजड़े
हुए गुलशन को
लफ़्ज़ों से
संवारता
है,
खिड़की के उस पार सुदूर नील
पर्वतों पर अब तक उठ रहे
हैं धूम्र अवशेष, किस की
मायावी छुअन झांकती
है, देह के बहोत
अंदर अहर्निश,
अनिमेष,
* *
- - शांतनु सान्याल
आप ने लिखा.....
जवाब देंहटाएंहमने पड़ा.....
इसे सभी पड़े......
इस लिये आप की रचना......
दिनांक 16/04/2023 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की जा रही है.....
इस प्रस्तुति में.....
आप भी सादर आमंत्रित है......
आपका हृदय तल से आभार ।
हटाएं