28 अप्रैल, 2023

विज्ञापनों की रिले रेस - -

हर कोई एक विज्ञप्ति लिए होता है किसी न
किसी मोड़ पर, " फ़िक्र न करो, मैं हूँ ना सब कुछ ठीक हो जाएगा," ये और
बात है कि कोई किसी के पास
नहीं होता, हम जन्म से
विज्ञप्ति के अभ्यस्त
होते हैं उसी के
साथ जीते
और
मरते हैं, हर कोई किसी न किसी सफ़र में -
मिलता है अप्रत्याशित रूप में, बहोत
कुछ कह जाता है ज़िन्दगी के
फ़लसफ़े, और मुस्कुरा कर
उतर जाता है, कल्पना
और वास्तविकता
के बीच किसी
एक स्टेशन
में, हम
लौट
आते हैं फिर किसी नए विज्ञप्ति की तरफ,
जिस पर लिखा होता है " धूप और छांव
का नाम ही जीवन है, चिंता मत
करो हम तुम्हारे साथ हैं,"
कांधे से एक अदृश्य
हाथ धीरे धीरे
उतर जाता
है, हम
पुनः
तलाशते हैं नयी विज्ञप्ति, हमारा गंतव्य आ
कर कब गुज़र जाता है हम जान ही नहीं
पाते, बस नज़र के सामने दौड़ते से
दिखाई देते हैं ढेर सारे रंग बिरंगे
विज्ञापनों की भीड़, अंतहीन
इस सफ़र में दरअसल
हमारे सिवा साथ
में कोई भी
नहीं होता।
* *
- - शांतनु सान्याल  


















 


 

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