न जगाए नींद से कोई मुझे, कि हैं
मेरी आँखें ख़्वाब दीदन इस
लम्हा, इस लम्हे से
ज़िन्दगी को
मिलती
है कुछ तो दर्द ए रिहाई, इस पल
में, मैं जी लेता हूँ कुछ उम्र
से ज़ियादा, न जगाए
इस वक़्त कोई
मुझे, कि
हूँ मैं अभी किसी की बाँहों में - -
ख़ुश्बू की मानिंद बिखरा
बिखरा हुआ, किसी
की साँसों में
मिला
है अभी अभी, मुझे अपना पता !
कि अब मैं गुमशुदा रूह
नहीं, न पुकारो मुझे
लौटती हुईं -
आवाज़
ए माज़ी, है गुम मेरा वजूद इस
पल किसी में हमेशा के
लिए - -
* *
- शांतनु सान्याल
मेरी आँखें ख़्वाब दीदन इस
लम्हा, इस लम्हे से
ज़िन्दगी को
मिलती
है कुछ तो दर्द ए रिहाई, इस पल
में, मैं जी लेता हूँ कुछ उम्र
से ज़ियादा, न जगाए
इस वक़्त कोई
मुझे, कि
हूँ मैं अभी किसी की बाँहों में - -
ख़ुश्बू की मानिंद बिखरा
बिखरा हुआ, किसी
की साँसों में
मिला
है अभी अभी, मुझे अपना पता !
कि अब मैं गुमशुदा रूह
नहीं, न पुकारो मुझे
लौटती हुईं -
आवाज़
ए माज़ी, है गुम मेरा वजूद इस
पल किसी में हमेशा के
लिए - -
* *
- शांतनु सान्याल
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 17 एप्रिल 2023 को साझा की गयी है
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंइस पल में जीने का सलीका आ गया, तो मानो जीने का तरीक़ा आ गया
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
हटाएं