जी उठेंगी एक दिन, सभी अप्रकाशित कहानियां,
असंख्य मूक कथाएं, प्रसुप्त से हैं, हमारे दरमियां,
आकाशमुखी, वृक्ष बनने की चाह किसे नहीं होती,
अंकुरण से लेकर, डालियों तक हैं कई परेशानियां,
कभी स्लेट पटिया है तो रंगीन कलम नहीं मिलते,
जन समारोह में भी, जीवन को घेरती हैं तन्हाइयां,
मृग मरीचिका ही तो हैं सभी आत्मीयता के शपथ,
मायावी आश्रय की तरह छलती हैं घनी परछाइयां,
ज़रूरी नहीं की हर एक, प्रतियोगिता को जीत जाएं,
बचाने अथवा उड़ाने में, फ़र्क़ नहीं रखती हैं आंधियां,
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- - शांतनु सान्याल
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