नव प्रजन्म को, भय मुक्त आसमान मिले,
अंकुरित बीजों को अपना हक़ समान मिले,
गतिशील लक्ष्य चक्र पर निशाना सठिक हो,
उभरते हुए पौधों को अनुकूल हवामान मिले,
अतीत के पृष्ठों से निकलें नवीन सृजन करें,
निर्मल भोर की तरह सभी को वर्तमान मिले,
ज़रूरी नहीं राह में मिलें सायादार बरगद वन,
न रुके हम चाहे पथ में कांटे या उद्यान मिले,
गंतव्य हर हाल में मिलता है तलाश जारी रहे,
किसे ख़बर किस के अंदर लुप्त भगवान मिले,
न जाने कितनी परिभाषाओं में गुम है आदमी,
अंतर्मन से खोजें, संभवतः सच्चा इंसान मिले,
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- - शांतनु सान्याल
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