12 अप्रैल, 2023

अनाहूत वृष्टि - -

इक टीस सी उभरती है कोयल के कुहुक
में, चंद्रबिंदु की तरह पड़े रहते हैं
सजल भावनाएं पलकों के
बीच में, झर चले हैं
किंशुक कुसुम,
उदास से
निःस्तब्ध खड़े हैं मधूक वन, लौटने को
है मधुमास, ऋतु चक्र का है अपना
ही पृथक विधान, ज़्यादा देर
तक नहीं रहता शून्य
स्थान, कोई न
कोई भर
जाता
है प्राण वायु शिथिल निःश्वास में, अदृश्य
माधुर्य छुपा रहता है असमय की
सींच में, चंद्रबिंदु की तरह पड़े
रहते हैं सजल भावनाएं
पलकों के बीच में |
* *
- - शांतनु सान्याल 

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 13 अप्रैल 2023 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. कोमल भावनाओं से सजी सुंदर रचना

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