26 दिसंबर, 2020

बिला उन्वान - -

चेहरा आसां नहीं बदलना दूसरों के मुताबिक़,
भीतर का सच, हर हाल में ज़ाहिर हो जाएगा,

वो खेल चुका सभी दांव शातिराना अंदाज़ के,
सुबह से पहले वो बिसात से बाहर हो जाएगा,

चाहे कोई कितनी बार बदल ले लिबास अपना,
हदे अक्स को छूते ही वो मुहाजिर हो जाएगा,

न लूटो मासूम बचपन को कटी पतंग की तरह,
उम्र बढ़ते ही बारूद उड़ाने में माहिर हो जाएगा,

इबादतों को रहने दो ज़ाती दायरे तक ही महदूद,
नशा बना तो नस्ले आदम ही काफ़िर हो जाएगा,

इज़हारे आज़ादी क्या सिर्फ़ उनकी है मिल्कियत,
ज़ुल्म हद से बढ़ा तो हर लब शमशीर हो जाएगा,

बिखरे दिलों को जोड़ने में, सदियां लग जाएंगी,
शीशमहल कहीं टूटा, फिर से तामीर हो जाएगा,

बड़ी मुद्दतों बाद पाया है, कुछ सुकून के लम्हात,
रूह को छेड़ा तो फिर प्यासा राहगीर हो जाएगा।

* *
- - शांतनु सान्याल



 
 
   
 
 


27 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना आज शनिवार 26 दिसंबर 2020 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,

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  2. बड़ी मुद्दतों बाद पाया है, कुछ सुकून के लम्हात,
    रूह को छेड़ा तो फिर प्यासा राहगीर हो जाएगा।
    ..बहुत ख़ूब ! सुंदर ख़्यालों से युक्त रचना..।

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  3. इज़हारे आज़ादी क्या सिर्फ़ उनकी है मिल्कियत,
    ज़ुल्म हद से बढ़ा तो हर लब शमशीर हो जाएगा,
    अद्भुत भाव का जाल लिए स्मृति में बैठने वाली रचना।
    उत्कृष्ट।
    सादर।

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  4. न लूटो मासूम बचपन को कटी पतंग की तरह,
    उम्र बढ़ते ही बारूद उड़ाने में माहिर हो जाएगा,

    लाजवाब...
    बेहतरीन पंक्तियां...
    उम्दा रचना !!! - डाॅ शरद सिंह

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  5. चेहरा आसां नहीं बदलना दूसरों के मुताबिक़,
    भीतर का सच, हर हाल में ज़ाहिर हो जाएगा,
    बहुत बहुत सुन्दर

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