04 अगस्त, 2020

ठहराव के बाद - -

बूंदों के मोती चिर चंचल, पत्तों के
वक्ष सदा ख़ाली, नेह - तृषा
न बुझे, सजल ऑंखें
अनंत सवाली।
जीवन -
पथ अशेष, उम्र का सफ़र फिर भी
अधूरा, बेशुमार वादे और
असंख्य इंतज़ार,
हथेलियों
में आए सिर्फ़ बादलों का चूरा। ये
कौन है जो आख़री पहर देता
है दस्तक, न ज़मीं, न
कोई आसमां मेरा,
फिर भी वो
हर हाल
में पहुँचता है मुझ तक। ये कैसी
तड़प है मेरे दिल की, दौड़ता
है बेतहाशा दिगंत की
ओर, दीवानगी
हो गोया
उसे इक नयी मंज़िल की। तुम हो
सामने या मेरा अक्स है
रूबरू, ये कैसा है
तिलिस्म
तेरी
आँखों का, इक ठहराव जो न हो
ख़त्म और न ही शुरू।

* *
- शांतनु सान्याल

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 04 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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