25 अगस्त, 2020

सजल प्रतिबिम्ब - -

इस जहाँ में कोई शख़्स नहीं, जो न
करे ख़ुद की नुमाइश, हर कोई
चाहे आसानी से हर चीज़
को हासिल करना, ये
दौर है इंतहां,
ख़रीद -
फ़रोख़्त का, हर हाल में है कोशिश,
ख़ुद को अग्रता में शामिल
करना। बहोत मुश्किल
है चाहतों का जल -
रंग छवि होना,
मेरी
तुलिकाओं के तो रंग देहाती हैं - -
आसां नहीं बाज़ार में उसका
हावी होना, लिहाज़ा
मेरे हाथों में दो
बूंद शबनम
के सिवा
कुछ
भी नहीं, मेरा हासिल है तेरी आँखों
का प्रतिच्छवि होना।

* *
- - शांतनु सान्याल   


  

4 टिप्‍पणियां:

  1. दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।

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  2. मेरी
    तुलिकाओं के तो रंग देहाती हैं - -
    आसां नहीं बाज़ार में उसका
    हावी होना,
    वाह ! सादगी भरी इस रोमानियत का रंग लाजवाब है शांतनु जी | बहुत हृदयस्पर्शी लिखते हैं आप | हार्दिक शुभकामनाएं

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  3. दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।

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