रहस्य, उन्हीं आँखों के प्रतिबिम्ब
में है तैरता नग्न शैशव और
उन्हीं सुप्त आँखों में है
विश्रृंखल जीवन का
अंतःनील, उन्हीं
हाथों में है
परम
सुख, उसी अंचल में है समाया लुप्त
मरू सलिल। तुम हो चाहे कोई
महत पीठाधीश या अजेय
अधिपति, बन जाओ
क्यों न महा -
मानव
फिर
भी तुम हो उसी गर्भगृह के असहाय
भ्रूण, उसी अंधकार गुफा से है
तुम्हारी उत्पत्ति, उन्हीं
अश्रु बूंदों में है निहित
पृथ्वी की अशेष
ख़ूबसूरती,
जन्म -
मृत्यु की पुनरावृति - - - - - - - - - -
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- - शांतनु सान्याल
वाह
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र प्रोत्साहित करने के लिए - - नमन सह।
हटाएंसत्य को उद्घाटित करती पोस्ट।
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