आज फिर तेरी इबादत कर के देखेंगे,
अब इल्ज़ामों से हमें ख़ौफ़ नहीं
होता, कि कौन है बुत और
कौन निराकार देवता,
तेरी निगाह में
है अगर
दो
बूंद ज़िन्दगी की, सारी दुनिया से - -
हम अदावत कर के देखेंगे,
लोग कहते हैं कि दोनों
जहान मिल जाते हैं
सजल आँख के
अन्तःस्थल
में, चलो
फिर
आज तुमसे आख़री मुहोब्बत कर के
देखेंगे, फिर सजने को है इक
बार मजलिस ए आसमां,
आख़री पहर, तेरे
पहलू में, हम
भी गुले -
शबाना के मानिंद शिरकत कर के - -
देखेंगे, आज फिर तेरी इबादत
कर के देखेंगे।
* *
- शांतनु सान्याल
अब इल्ज़ामों से हमें ख़ौफ़ नहीं
होता, कि कौन है बुत और
कौन निराकार देवता,
तेरी निगाह में
है अगर
दो
बूंद ज़िन्दगी की, सारी दुनिया से - -
हम अदावत कर के देखेंगे,
लोग कहते हैं कि दोनों
जहान मिल जाते हैं
सजल आँख के
अन्तःस्थल
में, चलो
फिर
आज तुमसे आख़री मुहोब्बत कर के
देखेंगे, फिर सजने को है इक
बार मजलिस ए आसमां,
आख़री पहर, तेरे
पहलू में, हम
भी गुले -
शबाना के मानिंद शिरकत कर के - -
देखेंगे, आज फिर तेरी इबादत
कर के देखेंगे।
* *
- शांतनु सान्याल
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (24अगस्त 2020) को 'उत्सव हैं उल्लास जगाते' (चर्चा अंक-3803) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
-रवीन्द्र सिंह यादव
असंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र प्रोत्साहित करने के लिए - - नमन सह।
हटाएंआख़री पहर, तेरे
जवाब देंहटाएंपहलू में, हम
भी गुले -
शबाना के मानिंद शिरकत कर के - -
देखेंगे, आज फिर तेरी इबादत
कर के देखेंगे।
सु न्दर सृ जन
असंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र प्रोत्साहित करने के लिए - - नमन सह।
जवाब देंहटाएं"अब इल्जामों में ख़ौफ़ नहीं होता"
जवाब देंहटाएंवाह कट बात है । बहुत खूब ।
असंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह।
हटाएंआज फिर तेरी इबादत कर के देखेंगे,
जवाब देंहटाएंवाह!!!
बहुत ही सुन्दर सृजन
असंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह।
जवाब देंहटाएं