मायावी कौन नहीं इस जहाँ में,
रेशमी कोशों में छुपे हों
कोई या बेझिझक
चल रहे हों
तेरे -
मेरे साथ अविरल कारवां में, -
गंध विहीन फूलों की
तरह थे सभी
छायामय,
फिर
भी जीते रहे हम उम्र के बियाबां
में, मैं और मेरा इतिहास
कुछ भी नहीं, कभी
फ़ुर्सत मिले
तो
पढ़ लेना अदृश्य लिपि नियति
के आसमां में, ये रास्ता
जाता है आदि और
अंत के उस
पार,
न मैं कोई परिपूर्ण पुरुष न ही
तुम्हारी है कोई गणना,
किसी निःस्वार्थ
मेहरबां में,
सब
कुछ है पारदर्शी क्या तमस -
और क्या रुपहली चाहत, इस
परिपूरक समीकरण से
कोई नहीं मुक्त
इस क्षणिक
जहाँ में।
* *
- शांतनु सान्याल
रेशमी कोशों में छुपे हों
कोई या बेझिझक
चल रहे हों
तेरे -
मेरे साथ अविरल कारवां में, -
गंध विहीन फूलों की
तरह थे सभी
छायामय,
फिर
भी जीते रहे हम उम्र के बियाबां
में, मैं और मेरा इतिहास
कुछ भी नहीं, कभी
फ़ुर्सत मिले
तो
पढ़ लेना अदृश्य लिपि नियति
के आसमां में, ये रास्ता
जाता है आदि और
अंत के उस
पार,
न मैं कोई परिपूर्ण पुरुष न ही
तुम्हारी है कोई गणना,
किसी निःस्वार्थ
मेहरबां में,
सब
कुछ है पारदर्शी क्या तमस -
और क्या रुपहली चाहत, इस
परिपूरक समीकरण से
कोई नहीं मुक्त
इस क्षणिक
जहाँ में।
* *
- शांतनु सान्याल
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह।
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 13 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
असंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह।
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