11 अगस्त, 2020

कुछ और वक़्त चाहिए - -


रात को गुज़रना है हर हाल में, चाहे दूर तक 
हों कोहरे के साए, कोई  नहीं सुनेगा 
तुम्हारी मेरी ख़ामोशियों की 
बातें, किसे फ़र्क़ पड़ता 
है यहाँ, ये तो पता 
विहीन शहर 
है, कोई 
आये या कोई अजनबी की तरह चुपचाप - -
निकल जाए। हमारे अस्तित्व का 
बना रहना भी अपने आप 
में किसी युद्ध से कम  
नहीं, किसे 
दिखाएं 
टूटे ख़्वाब के महीन टुकड़े, इन्हें फिर जोड़ने 
का अब कोई भरम नहीं। सांवली रात के  
आंचल से सितारों के गोट झर 
चले, बहोत मुश्किल है 
उम्र भर का साथ 
निभाना, 
लिहाज़ा सुबह से पहले दुआओं से अपनी सूनी 
गोद भर चले। कौन बैठा है यूँ एकाकी, 
निस्तब्ध, उम्र दराज़ पीपल के 
निचे, न जाने कितने 
लहर उभर कर 
डूब गए, 
उन निगाह ए झील के निचे। न करो फिर कोई 
नया वादा, कि वक़्त चाहिए कुछ और 
उभरने के लिए, अभी अभी तो 
लूटा है शहर को किसी ने,
न जाने कितनी 
सदी, और 
चाहिए, गली कूचों को दोबारा संवरने के लिए। 

* * 
- शांतनु सान्याल  

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर।
    श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।

    जवाब देंहटाएं
  2. असंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह। श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको भी।

    जवाब देंहटाएं

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past