शब्दों की अबूझ पहेलियों में अक्सर
मैं तुम्हें ढूंढता हूँ गुमशुदा कड़ी
पाने के लिए, इक मुद्दत
से है दिलों में तमस
घना, भटकता
हूँ रंग -
मशाल की लड़ी पाने के लिए। उस -
पार, कोहरे की वादियों में है
कहीं सुबह की प्रथम
रौशनी, उड़ान
पुल के
नीचे ढूंढता हूँ मैं अधखिली, निरीह
सी ज़िन्दगी, गुज़रते हैं मेट्रो
ट्रेन, विलासपूर्ण महंगी
कारें, सुरभित स्त्री -
पुरुष, मेरी
आँखों
में तो राख रंग के सिवा कुछ भी नहीं,
उम्र के उतरन में फिर वही हैं
धूसर ख़्वाब के पैबंद,
अनंत क्षुधित दिनों
के टांके, और
अशेष
जीने की अनबुझ तिश्नगी, पथराई
आँखों में धुंध की तरह तैरती
है ये ज़िन्दगी।
* *
- - शांतनु सान्याल
मैं तुम्हें ढूंढता हूँ गुमशुदा कड़ी
पाने के लिए, इक मुद्दत
से है दिलों में तमस
घना, भटकता
हूँ रंग -
मशाल की लड़ी पाने के लिए। उस -
पार, कोहरे की वादियों में है
कहीं सुबह की प्रथम
रौशनी, उड़ान
पुल के
नीचे ढूंढता हूँ मैं अधखिली, निरीह
सी ज़िन्दगी, गुज़रते हैं मेट्रो
ट्रेन, विलासपूर्ण महंगी
कारें, सुरभित स्त्री -
पुरुष, मेरी
आँखों
में तो राख रंग के सिवा कुछ भी नहीं,
उम्र के उतरन में फिर वही हैं
धूसर ख़्वाब के पैबंद,
अनंत क्षुधित दिनों
के टांके, और
अशेष
जीने की अनबुझ तिश्नगी, पथराई
आँखों में धुंध की तरह तैरती
है ये ज़िन्दगी।
* *
- - शांतनु सान्याल
नीचे कर लें।
जवाब देंहटाएंसुन्दर ।
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह। त्रुटि सुधार की याद दिलाने के लिए आपका आभार।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 28 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंसार्थक और सुन्दर।
जवाब देंहटाएंदूसरे लोगों के ब्लॉग पर भी टिप्पणी किया करो।
जी, कोशिश जारी है कि पढ़ पाऊं दूसरों की की भी रचनाएँ गंभीरता से - - ताकि सठिक मंतव्य दे सकूँ - - नमन सह।
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
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