उस गुलमोहरी मोड़ पे कहीं तुमने बदला
था अपना रास्ता, सुदूर देवदारु के
अरण्य से तुम्हें शायद मिला
था मधुमास का निमंत्रण,
हम जहाँ थे वहीँ रह
गए, हमें था
सिर्फ़
बबूल वन का वास्ता। हमारे पास ऊसर -
ज़मीं के सिवाय, कुछ भी न था फिर
भी, हमने न मानी अपनी हार,
झोंक दिया सर्वस्व अपना
महराब ए ज़िन्दगी
के लिए, अपनी
अपनी
क़िस्मत है,कोई डूबे लब ए दरिया और
कोई, हर हाल में पहुंचे उस पार।
निर्मेघ आसमान में फिर
सजी है रौशनी की
महफ़िल,
फिर
आख़री पहर में झरेंगे पारिजात, फिर
आहत यामिनी होगी अनकही
बातों से बोझिल, फिर
निःशब्द, उनींदी,
आँखों के
तीर होगी एक मुद्दत से थमी हुई - -
बरसात।
* *
- शांतनु सान्याल
था अपना रास्ता, सुदूर देवदारु के
अरण्य से तुम्हें शायद मिला
था मधुमास का निमंत्रण,
हम जहाँ थे वहीँ रह
गए, हमें था
सिर्फ़
बबूल वन का वास्ता। हमारे पास ऊसर -
ज़मीं के सिवाय, कुछ भी न था फिर
भी, हमने न मानी अपनी हार,
झोंक दिया सर्वस्व अपना
महराब ए ज़िन्दगी
के लिए, अपनी
अपनी
क़िस्मत है,कोई डूबे लब ए दरिया और
कोई, हर हाल में पहुंचे उस पार।
निर्मेघ आसमान में फिर
सजी है रौशनी की
महफ़िल,
फिर
आख़री पहर में झरेंगे पारिजात, फिर
आहत यामिनी होगी अनकही
बातों से बोझिल, फिर
निःशब्द, उनींदी,
आँखों के
तीर होगी एक मुद्दत से थमी हुई - -
बरसात।
* *
- शांतनु सान्याल
लिखते रहें
जवाब देंहटाएंआपके प्रोत्साहन और स्नेह के लिए ह्रदय से आभार। शुभ रात्रि प्रिय मित्र।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह।
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