तुम्हारी धरती, तुम्हारा है आसमान,
बनाओ इस तरह से आग्नेय -
सीमान्त कि हमलावर
का हो उदय से
पूर्व, पूर्ण
अवसान। तुम्हारी नदियां, तुम्हारे ये
मंदिर - घाट, तुम्ही हो विश्व
पुरोधा, तुम्हारे हाथों में
है उभरता हुआ
दिगंत,
तुम्ही हो कल के अजेय सम्राट। इस
मातृ धरा में जिसने जन्म लिया
उसे नहीं चाहिए कोई और
आलोकित वास स्थान,
तुम्ही हो अर्जुन
तुम्ही में
समाया त्रिलोक का मुक्ति - स्नान। -
केसर के बागों से लेकर नील -
पर्वतों तक, हिमगिरि से
उठकर सोमनाथ के
शीर्ष तक. सिर्फ
तुम्हारी हो
वंदना,
माँ भारती ! केवल तुम्हारा हो अखंड
यशोगान, तुम्हारे चरणों में ही हो
पुनर्जन्म, तुम्हारे लिए ही
निकले देह से मेरे
प्राण।
* *
- शांतनु सान्याल
चित्रांकन - - अबनीन्द्र नाथ ठाकुर (निर्माण १९०५ )
बनाओ इस तरह से आग्नेय -
सीमान्त कि हमलावर
का हो उदय से
पूर्व, पूर्ण
अवसान। तुम्हारी नदियां, तुम्हारे ये
मंदिर - घाट, तुम्ही हो विश्व
पुरोधा, तुम्हारे हाथों में
है उभरता हुआ
दिगंत,
तुम्ही हो कल के अजेय सम्राट। इस
मातृ धरा में जिसने जन्म लिया
उसे नहीं चाहिए कोई और
आलोकित वास स्थान,
तुम्ही हो अर्जुन
तुम्ही में
समाया त्रिलोक का मुक्ति - स्नान। -
केसर के बागों से लेकर नील -
पर्वतों तक, हिमगिरि से
उठकर सोमनाथ के
शीर्ष तक. सिर्फ
तुम्हारी हो
वंदना,
माँ भारती ! केवल तुम्हारा हो अखंड
यशोगान, तुम्हारे चरणों में ही हो
पुनर्जन्म, तुम्हारे लिए ही
निकले देह से मेरे
प्राण।
* *
- शांतनु सान्याल
चित्रांकन - - अबनीन्द्र नाथ ठाकुर (निर्माण १९०५ )
स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंजय हिन्द।
जवाब देंहटाएंभारत माता की जय हो।
असंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह।
जवाब देंहटाएं