21 अगस्त, 2020

गुमशुदा दस्तावेज़ - -

आज़ादी के मानी ग़र तुम्हें
मिल जाए तो हमें भी
बताना, जो लोग
अपनी ज़मीं
से हैं बेघर,
अपने वतन में किसने
बनाया उन्हें प्रवासी,
ग़र उनका पता
मिल जाए
तो हमें
भी दिखाना, आज़ादी की -
कहानी हमें भी सुनाना।
तुमने बाँट दी हर
एक सांस को
दाएँ बाएँ,
लेकिन
उदर की आग ले कर लोग
जाएं तो कहां जाएं,
जो दिला सके
एक मुश्त
उम्मीद की किरण, उस
सुबह से हमें भी
मिलवाना,
फिर
आज़ादी के मानी हमें
 समझाना । तुम्हारे
सिवा कोई और
नहीं जां
निसार ये ग़लत फ़हमी
न ले डूबे तुम्हें एक
दिन, हमारी
नफ़स में
अभी तक है ज़िंदा बुज़ुर्गो
का दिया सुषुप्त
आतिशफिशां,
ज़रूरत
सिर्फ़ है उसे नींद से
जगाना, तुम्हारा नाम
ग़र है आज़ादी के
शहीदों में तो
वो
ऐतिहासिक दस्तावेज़ हमें
भी दिखाना, फिर घंटों
 बैठ कर आज़ादी
के मानी हमें
समझाना, जीने का हक़ - -
कम से कम हमें भी
दिलवाना ।
* *
- - शांतनु सान्याल

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