25 अगस्त, 2020

अंदर का आदमी - -

किस अदा से उसने भूख को
इक बिमारी में बदल
दिया, फिर एक
मौत का
कोई
दस्तावेज़ न रहा, मंदिर हो -
या मस्जिद यूँ ही उजड़ते
बसते रहे, जो उजड़
गए खिलने से
पहले उनका
कहीं
कोई उल्लेख न रहा। सिर्फ़
पोशाक के रंग बदल
गए, अंदर से वो
आज भी
बर्बर
से कम नहीं, हम आज भी
हैं अपने ही देश में एक
ख़ानाबदोश, वो
आज भी
किसी
विषाक्त तरुवर से कम -
नहीं, वही अंतहीन,
बेरंग है हमारी
ज़िन्दगी
का
सफ़र, हम जहाँ थे वहीँ -
रह गए खुले आसमां
के नीचे, न गाँव
कोई, न रहा
अपना
कोई रौशनी का शहर। - -

* *
- शांतनु सान्याल  


  

10 टिप्‍पणियां:

  1. दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 25 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।

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  4. दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।

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  5. दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।

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  6. बहुत सुंदर भावों का सुंदर सृजन।

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  7. दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।

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