जा चुकी, न किसी का इंतज़ार,
न ही कोई मिलन बिंदु की
तलाश, दूर तक कुछ
है तो सिर्फ़ यादों
की परछाइयां,
ज़िन्दगी
के धूप - छाँव, नोक - झोंक, हार -
मनुहार, कुछ पल जो होते हैं
सिर्फ़ एहसास के लिए,
तुम और मैं और
वो टूटी हुई
बेंच,
निःस्तब्ध रात्रि, धुंध भरी राहों में
जब तलाशते रहे हम कुछ
ख़ुशी की गहराइयाँ,
सुदूर ऊंघती सी
सघन नील
पहाड़ियों
में टिमटिमाते थे कुछ चिराग़, या
उभर चली थीं जुगनुओं की
बस्तियां, सुरमयी अँधेरे
में, और भी ख़ूबसूरत
लगीं तुम्हारी
डूबी - डूबी
सी वो
आँखें, जिन्हें देख जी उठे थे उस -
पल, सभी बेजान सी वादियां,
इक मख़मली छुअन की
तरह रहती है रूह के
बहोत अंदर
ख़ुश्बुओं
से
लबरेज़, हमारी मुद्दतों पुरानी वो
अप्रकाशित कहानियां, दूर तक
कुछ है तो सिर्फ़ यादों की
परछाइयां।
* *
- - शांतनु सान्याल
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंयादों के नर्म मखमली एहसासों को सहलाती रचना |
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
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