उस अंतिम मोड़ पे कहीं था शायद
मेरे इक जां अज़ीज़ दोस्त का
घर, बहोत सीधा साधा,
जो खोजता था
स्कूल की
खिड़कियों के पार तितलियों का - -
शहर, बादलों का ठिकाना,
निझुम पर्वतों में
छुपे हुए
जुगनुओं का आशियाना, और इसी
खोज ने उसे छोड़ दिया बहुत
पीछे, वक़्त के साथ
लोग बदलते
गए, वो
आज भी न जाने क्या ढूंढता है - -
अतीत के पन्नों में अपना
पता पूछता है, वो कल
भी अकेला था वो
आज भी
तन्हां है, फिर भी ख़ुश है अपनी
दिल की गहराइयों में, क्या
हुआ ग़र ज़माना उस
से ना आशना
है, ये
ज़रूरी नहीं सिर्फ़ तुम्हारे पैमाने
से ज़िन्दगी संवारी जाए,
कभी कभार क्यों न
ज़मीर के लिए
जीत के
बाज़ी हारी जाए - -
* *
- - शांतनु सान्याल
मेरे इक जां अज़ीज़ दोस्त का
घर, बहोत सीधा साधा,
जो खोजता था
स्कूल की
खिड़कियों के पार तितलियों का - -
शहर, बादलों का ठिकाना,
निझुम पर्वतों में
छुपे हुए
जुगनुओं का आशियाना, और इसी
खोज ने उसे छोड़ दिया बहुत
पीछे, वक़्त के साथ
लोग बदलते
गए, वो
आज भी न जाने क्या ढूंढता है - -
अतीत के पन्नों में अपना
पता पूछता है, वो कल
भी अकेला था वो
आज भी
तन्हां है, फिर भी ख़ुश है अपनी
दिल की गहराइयों में, क्या
हुआ ग़र ज़माना उस
से ना आशना
है, ये
ज़रूरी नहीं सिर्फ़ तुम्हारे पैमाने
से ज़िन्दगी संवारी जाए,
कभी कभार क्यों न
ज़मीर के लिए
जीत के
बाज़ी हारी जाए - -
* *
- - शांतनु सान्याल
सुन्दर सृ जन
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया जनाब - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरती से जिंंदगी और खुदमुख्तारी को शब्दों में ढाल दिया आपने शांतनु जी... ज़रूरी नहीं सिर्फ़ तुम्हारे पैमाने
जवाब देंहटाएंसे ज़िन्दगी संवारी जाए,
कभी कभार क्यों न
ज़मीर के लिए
जीत के
बाज़ी हारी जाए - -
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंकभी कभार क्यों न
जवाब देंहटाएंज़मीर के लिए
जीत के
बाज़ी हारी जाए - -
वाह!!!
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुंदर। आभार और बधाई!!!
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
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