27 अगस्त, 2020

किनारों के उस पार - -

घनीभूत हैं कुछ बूंद अभिमानी,
कुछ टूटे हुए रंगीन पेन्सिल,
कुछ अनकही बातों के
छायापथ, सर्पिल
आवेग के
मध्य
अहर्निश, वही प्रस्तर युगीन - -
एक ही कहानी। सभी
के लिए है केवल
वही एक
विस्तीर्ण नीलाभ छत, फिर - -
इतने स्तम्भ और दीवारें
किस लिए, जन्म -
मरण के
लेखाचित्र वही चिरंतन, एक - -
ही नदी के फिर इतने
सारे किनारे किस
लिए।

* *
- - शांतनु सान्याल


 

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