31 अगस्त, 2020

राज -पथ से आधारशिला तक - -

उस हाईवे के किसी एक कच्चे मोड़
से बिछुड़ जाती है ज़िन्दगी,
कीचड़ भरे रास्तों से
हो कर हम वहां
तक पहुँचे
भी
अगर, रोक लेती है बिन पुलिया की
नदी। फाइलों में कहीं गुम है
इस गाँव का नाम यूँ
कह लीजिये
उसका
कोई
अस्तित्व ही नहीं, कालापानी की
सज़ा है यहाँ ज़िन्दगी, वैसे
तो यहाँ लोग आते हैं
कभी कभार,
लेकिन
हर
पांच साल में यहाँ लगता है मेला
अपार, टोपी पहनाने वाले
होते हैं बेशुमार, वही
घिसा पिटा
रिकार्ड,
आश्वासन के आकाशमुखी झूले -
कुछ रजिस्ट्रेड मदारी कुछ
स्थानीय जमूरे, और
तालियों के
बीच
गले में रस्सी बांध जाते हैं लोग,
राज - पथ और आधारशिला
के मध्य उम्र भर के लिए
अपना स्वार्थ साध
जाते है लोग,
गले में
रस्सी बांध जाते हैं लोग - - सिर्फ़
नाचते रहो उनकी डमरू की
आवाज़ पर - -

* *
- - शांतनु सान्याल
 

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